जिंदगी
अपने नुकीले दांतों में फंसे
हमारे शरीर को
कुचल-कुचल कर,
स्वाद ले-ले कर
चबाती है
अन्तिम साँस तक।
फिर...
उगल देती है बेजान लाश
और...हम
सारा दोष मढ़ देते हैं
मौत के माथे।
मेरी जिंदगी एक कैनवस की तरह है। जिसमें शब्द कम है और चित्र ढेरों-ढेर। नहीं मालूम आपके लिए यह क्या है पर मेरा तो यही सच है।
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अभी पिछले दिनों एक खोजी लेखक ने गधों की घटती संख्या पर अच्छा खासा लेख लिख मारा। लेखक की चिंता इस बात को लेकर थी कि आम आदमी की जिंदगी में ...
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